International Labour Organisation (ILO) IPEC

@lokeshmotan0909

the use, procuring or offering of a child for prostitution, for the production of pornography or for pornographic performances;
the use, procuring or offering of a child for illicit activities, in particular for the production and trafficking of drugs as defined in the relevant international treaties;
work which, by its nature or the circumstances in which it is carried out, is likely to harm the health, safety or morals of children (“hazardous child labour”, see below)
Hazardous child labour, one of the worst forms of child labour
Hazardous child labour or hazardous work is the work which, by its nature or the circumstances in which it is carried out, is likely to harm the health, safety or morals of children.
Guidance for governments on some hazardous work activities which should be prohibited is given by Article 3 of ILO Recommendation No. 190 :

work which exposes children to physical, psychological or sexual abuse;
work underground, under water, at dangerous heights or in confined spaces;
work with dangerous machinery, equipment and tools, or which involves the manual handling or transport of heavy loads;
work in an unhealthy environment which may, for example, expose children to hazardous substances, agents or processes, or to temperatures, noise levels, or vibrations damaging to their health;
work under particularly difficult conditions such as work for long hours or during the night or work where the child is unreasonably confined to the premises of the employer.

IPEC

Indian Helping Hand ✋

Cow death

Curious cow disease

While the police figure is 98, the cow-keepers say 100 cows were dead by 9 am Saturday morning.

The watchman and the caretaker who fed the cows have been detained. CCTV footage is being examined for any suspicious people entering the Gaushala in the preceding days.This Gaushala was first set up near Kanaka Durga temple in the city and relocated to Kothuru Tadepalli on city outskirts two years ago.

(Concept of Poverty Line):

गरीबी रेखा की 


गरीबी रेखा का आधार कैलोरी ऊर्जा को माना जाता है भारत में छठवीं पंचवर्षीय योजना में कैलोरी के आधार पर गरीबी रेखा को परिभाषित किया गया है । इसके अनुसार गरीबी रेखा का तात्पर्य ग्रामीण क्षेत्र में 2400 केलोरी तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी ऊर्जा के प्रतिव्यक्ति उपयोग से है । व्यय के आधार पर गरीबी रेखा सातवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी रेखा 1984-85 की कीमतों पर प्रति परिवार प्रतिवर्ष 6400 रूपयें का व्यय माना गया था ।

यूरोपीय देशों में गरीबी की अवधारणा को परिभाषित करने के लिये सापेक्षिक गरीबी के आधार पर आकलन किया जाता है उदाहरणार्थ किसी व्यक्ति की आय राष्ट्रीय औसत आय के 60 प्रतिशत कम है तो उस व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे माना जा सकता है । औसत आय का आकलन विभिन्न मापदण्डों से किया जा सकता है ।

योजना आयोग ने 2004-05 में 27.5 प्रतिशत गरीबी मानते हुये योजनाएं बनायी इसी अवधि में विशेषज्ञ समूह का गठन किया था । जिसने पाया कि गरीबी तो इससे कहीं ज्यादा 37.2 प्रतिशत थी इसका अर्ध है कि मात्र आकड़ों के दाये-बाये करने से ही 100 मिलियन लोग गरीबी रेखा में शुमार हो जाते है ।

ADVERTISEMENTS:



राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन:

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ने अपना त8वा सर्वेक्षण प्रतिवेदन 20 जून, 2013 को जारी किया । रिर्पोट के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में सबसे निर्धन लोग औसतन मात्र 17 रूपये प्रतिदिन और शहरों में सबसे निर्धन लोग 23 रूपयें प्रतिदिन में जीवन यापन करते है । 68वें सर्वेक्षण रिर्पोट की अवधि जुलाई, 2011 से जून 2012 तक थी ।

यह सर्वेक्षण ग्रामीण इलाकों में 74.96 गांव और शहरों में 52.63 इलाकों के नमूनों पर आधारित है । अखिल भारतीय स्तर पर औसतन प्रतिव्यक्ति मासिक खर्च ग्रामीण इलाकों में करीब 14.30 रूपयें जबकि शहरी इलाकों में 26.30 रूपयें रहा । राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ने कहा इस प्रकार से शहरी इलाकों में औसतन प्रतिव्यक्ति मासिक खर्च ग्रामीण इलाकों के मुकाबले लगभग अप्रतिशत अधिक रहा ।

ग्रामीण भारतीयों ने वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान खादय पर आय का औसतन 52.9 प्रतिशत खर्च किया जिसमें मोटे अनाज पर 10.8 प्रतिशत दूध और दूध से बने उत्पादों पर 8 प्रतिशत पैय पर 7.9 प्रतिशत और सब्जियों पर 6.6 प्रतिशत भाग शामिल है ।

ADVERTISEMENTS:



भारत में जनवरी 2012 में करीब 1.4 करोड़ लोगों को नौकरी मिली, रोजगार प्राप्त करने वाले लोगों की यह संख्या वर्ष 2010 के इसी माह की तुलना में 3 प्रतिशत अधिक है । राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सहर्ष दौर के सर्वेक्षण में जनवरी 2012 तक बढ़ कर 47.29 करोड़ पहुँच गयी है ।



भारत में गरीबी के कारण (Causes of Poverty in India):
स्वतंत्रता से लेकर आज तक गरीबी भारत की प्रमुख समस्या बनी हुई हे । योजनाबद्ध विकास के छह दशक और पंचवर्षीय योजनाओं में गरीबी उन्मूलन को प्रमुख लक्ष्यों में सम्मिलित किये जाने के बावजूद गरीबी से नहीं उभरना विकास की योजनाओं पर एक प्रश्न-चिन्ह है ।

भारत में गरीबी के लिए अनेक कारण उत्तरदायी है जिनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं:

(1) योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन का अभाव भारत में योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन का अभाव गरीबी का प्रमुख कारण है । स्वतंत्रता के बाद गरीबों के उत्थान के लिए खूब योजनाएँ बनी । आज भी गरीबी उन्मूलन के नाम पर कई योजनाओं की घोषणा होती है ।

वर्तमान में गरीबों के नाम पर अनेक योजनाएँ क्रियान्वयन में हैं, किन्तु गरीबी की समस्या जस की तस है । विगत वर्षों में गरीबी उन्मूलन की योजनाओं पर करोडों रूपयें पानी की तरह बहा दिया गया ।

गरीबी उन्मूलन की योजनाओं में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर हैं । गरबों के लिए बनी योजनाओं का पूरी जानकारी गरीबों को नहीं है । गरीबों के लिए बनी योजनाओं में आवंटित राशि जरूरतमन्दों तक कम मात्रा में पहुंची । आज गरीबों के उत्थान के लिए नई योजनाओं की अधिक आवश्यकता नहीं है योजनाएँ तो पहले से ढेरों की संख्या में है, बस आवश्यकता गरीबी उन्मूलन की योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन की है ।

(2) धीमा विकास गरीबी उन्मूलन के लिए आर्थिक विकास जरूरी हे । भारत के आर्थिक विकास की दृष्टि से कई वर्षों तक पिछड़े रहने के कारण गरीबी की समस्या दूर नहीं हो सकी । योजनाबद्ध विकास की दीर्घावधि के बावजूद 1950 से 1980 के बीच की 3.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर विश्व में ‘हिन्दू विकास दर’ के नाम से चर्चित रही । वर्तमान में भी भारत विकासशील देश है । आर्थिक विकास में उच्चावचन की प्रवृत्ति देखने को मिलती है । खाड़ी युद्ध के दौरान आर्थिक विकास की दर अत्यधिक गिर गई थी । आर्थिक विकास की ऊंची दर अर्जित नहीं कर पाने के कारण गरीबी की समस्या ज्वलंत बनी हुई है ।

(3) जनाधिक्य तीव्रता से बढ़ रही जनसंख्या गरीबी का बड़ा कारण है । विकराल जनसंख्या के सामने अथाह प्राकृतिक संपदा सीमित नजर आने लगी है । भारत ने एक अरब से अधिक जनसंख्या के साथ नयी सहस्त्राब्दि में प्रवेश किया है । जनसंख्या की वर्तमान वृद्धि दर यदि भविष्य में भी बनी रहती है । तो अगले वर्षों में भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ सकता है । जनसंख्या वृद्धि दर के साथ रोजगार के अवसर नहीं बढ़ रहे है । नतीजन गरीबी की समस्या मुखर बनी हुई है ।

(4) आर्थिक विषमता बढ़ती आर्थिक विषमता गरीबी का बड़ा कारण है भारत में आर्थिक प्रगति के साथ आर्थिक विषमता भी बढ़ी है । विगत वर्षों में धनिकों और गरीबों के बीच की खाई तीव्रता से बढ़ी है । धनी और धनिक हुए है तथा गरीबों की स्थिति अधिक दयनीय हुई है । आर्थिक उदारीकरण के प्राप्त होने के बाद आर्थिक विषमता की स्थिति विकट हुई है । योजनाबद्ध विकास और आर्थिक उदारीकरण में आर्थिक विषमता के बढ़ने के कारण शहरों और गांवों में गरीबी की दशा में सुधार देखने को कम मिलता है ।



(5) भूखी निर्माण की धीमी गति वित्तीय संसाधनों के अभाव के साथ पूजी निर्माण की गति धीमी है पूजी निर्माण के कम होने के कारण ओद्योगिक विकास की गति तेज नहीं हो सकी । ओद्योगिक विकास की दर ऊँची नहीं होने के कारण लोगों को रोजगार के अधिक अवसर मुहैया नहीं हो सके रोजगार सृजन के अभाव में गरीबी की समस्या विकट बनी हुई है ।

(6) प्राकृतिक आपदाएँ और अकाल योजनाबद्ध विकास के छह दशक बाद तक भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता बनी हुई है । मानसून की अनिश्चिता के कारण कृषि उत्पादन में उच्चावचन की प्रवृत्ति ब्याज है । अतिवृष्टि, अनावृष्टि, ओला, बाढ़, भूचाल, आधी आदि प्राकृतिक घटनायें अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती रहती है । प्राकृतिक आपदाओं से ग्रामीण परिवेश प्रभावित होता है और गरीबों पर अधिक भार पड़ता है ।

(7) बेरोजगारी स्वतंत्रता के लेकर आज तक बेरोजगारी प्रमुख आर्थिक समस्या बनी हुई है । देशवासियों को जनसंख्या वृद्धि के अनुपात के अनुसार रोजगार के अवसर मुहैया नहीं हो सकें । रोजगार को बढ़ावा देने वाली गांधी के आर्थिक विचारधारा पुरानी पड़ चुकी है । लघु एवं कुटीर उद्योगों के प्रतिस्पर्धा में नहीं टिकने से रोजगार के अवसर घटे है । रोजगार के अवसर घटने के कारण गरीबी की समस्या जस की तस है ।

(8) उत्पादन की परम्परागत तकनीक भारत में उत्पादन के क्षेत्र में आधुनिक प्रोद्योगीकी का आभाव है शोध एवं अनुसंधान पर कम निवेश किया गया है । निजी क्षेत्र में नवीन प्रौद्योगीकी पर अधिक ध्यान नहीं दिया है । पुरानी तकनीक के काम में लेने के कारण भारतीय उत्पादन अतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर सकें । योजनाबद्ध विकास के दौर में विदेशी मुद्रा भण्डार के नहीं बढ़ पाने के कारण औद्योगिक विकास तीव्र गति नहीं पकड़ सका । नतीजन देश में गरीबी की समस्या बढ़ी है ।

भारत में गरीबी निवारण के प्रयास (Efforts Taken to Reduce Poverty in India):
भारत में गरीबी की विकट समस्या को दृष्टिगत रखते हुये केन्द्र सरकार स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों से ही गरीबी निवारण के लिये प्रयासरत है पंचवर्षीय योजनाओं में गरीबी उन्मूलन को प्रमुख प्रथमिकताओं में सम्मिलित किया गया है । पांचवीं पंचवर्षीय योजना में ”गरीबी हटाओ” नारे को प्रमुख प्राथमिकता में सम्मिलित किया गया ।

योजनाबद्ध विकास में गरीबों के लिये बनी योजनाओं पर भारी भरकम पूंजी निवेश किया गया है । जिसके फलस्वरूप विगत वर्षों में गरीबी में निरन्तर गिरावट हुई है । फिर भी निर्धन लोगों की कुल संख्या जनसंख्या में वृद्धि हो जाने के कारण यह स्थिर बनी हुई है । आर्थिक वृद्धि के कारण रोजगार के अवसर बढ़ने से गरीबी को कम करने में मदद मिलती है ।

आर्थिक विकास के अलावा लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए बुनियादी सेवाओं की व्यवस्था के लिये सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है । स्वरोजगार और मजदूरी रोजगार दोनों के सृजन के लिये विशेष रूप से बनाये गये गरीबी रोधी कार्यक्रम पुन: रचित एवं संरक्षित किये गये है । ताकि इस कार्यक्रम को अधिक कारगर बनाया जा सकें ।

भारत में ग्रानीण और शहरी क्षेत्रों में क्रियान्वित किये जा रहे गरीबी उन्मूलन के प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार है:

(a) जवाहर ग्राम समृद्धि योजना,

(b) स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना,

(c) राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम,

(d) रोजगार अश्वासन योजना,

(e) प्रधानमत्री ग्रामोदय योजना,

(f) स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना,

(g) बन्धुआ मजदूर,

(h) बीस सूत्रीय कार्यक्रम,

(i) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना,

(j) अंबेडकर आवास योजना ।

गरीबी उन्मूलन की उपलब्धियाँ:

भारत में स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों से ही केन्द्र सरकार के द्वारा गरीबों की दशा को सुधारने के प्रयास किये जाते रहे है । योजनाबद्ध विकास के दौरान गरीबों के उत्थान के लिये अनेक कार्यक्रमों की घोषण की जा चुकी है । गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के कारगर क्रियान्वयन के अभाव में अवश्य गरीबों को अपेक्षित लाभ नहीं मिला है ।

गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के परिणाम स्वरूप गरीबी 1993-94 में 36 प्रतिशत से घटकर 2004-05 में 26.1 प्रतिशत रह गयी है । तथा विगत वर्षों में गरीबी उन्तुलन कार्यक्रम यथा महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजनाओं के माध्यम से इसमें लगातार गिरावट आ रही है ।

Home ›› Hindi ›› Economics ›› India ›› Poverty कर्मचारी संगठन | 4 Main Types of Organisation: Line, Functional, Line and Staff Organization
सार्वजनिक उपक्रम और उसके प्रारूप | Public Enterprises and Its Forms in Hindi
ADVERTISEMENTS

TABLE OF CONTENTS
गरीबी का अर्थ (Meaning of Poverty):
गरीबी रेखा की अवधारणा (Concept of Poverty Line):
भारत में गरीबी के कारण (Causes of Poverty in India):
भारत में गरीबी निवारण के प्रयास (Efforts Taken to Reduce Poverty in India):
Terms of Service Privacy Policy Contact Us

Sec 66A of IT Act: The Long Arm of a Defunct Law
India Today
|
Sponsored
From India helping hand

Course Options
Study | Search Ads
|

Meaning of poverty

गरीबी का अर्थ

गरीबी उस समस्या को कहते हैं जिसमें व्यक्ति अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ यथा, रोटी, कपड़ा और मकान को पूरा करने में असमर्थ होता है । अधिक दृष्टिकोण से उस व्यक्ति को गरीब या गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है । जिसमें आय का स्तर कम होने पर व्यक्ति अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है ।

गरीबी के आकलन के लिये विभिन्न देशों में मान्य पारिभाषिक व्यवस्था का प्रयोग किया गया है । भारत में गरीबी एक मूलभूत आर्थिक एवं सामाजिक समस्या है भारत एक जनाधिक्य वाला देश है आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत की गिनती विकासशील देशों में होती है । आर्थिक नियोजन की दीर्घावधि के वाबजूद भारत को गरीबी की समस्या से निजात नहीं मिली है देश की बहुसंख्यक जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने के लिये मजबूर हे भारत में गरीबी की वास्तविक संख्या ज्ञात करना कठिन है फिर भी विभिन्न संगठनों द्वारा गरीबी रेखा को विभिन्न मापदण्डों के आधार पर परिभाषित किया गया है ।

Design a site like this with WordPress.com
Get started